देहरादून
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की कुर्सी जाना तीन दिन पहले की तय हो गया था। मगर जिस तेजी से छोटे से प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण पैदा हुआ है। उसके लिए हमेशा से ही भाजपा जिम्मेदार रही है। पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत और अब तीरथ की कुर्सी छीनी गई। उससे भाजपा के साथ ही उत्तराखंड के आम जनमानस में पार्टी के प्रति निराशा का भाव पैदा हो गया है। आपस में उलझ रही कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है। भाजपा के थिंक टैंक ने पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी से हटाकर अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया था। और अब तीरथ को हटाना तो भाजपा के लिए उत्तराखंड में आत्मघाती कदम भी साबित हो सकता है। राज्य गठन के बाद से प्रदेश में शनिवार को ग्यारहवें मुख्यमंत्री का नाम सामने आएगा। राजनीतिक पंडितों को मानना है कि भाजपा ने राज्य बनने के बाद से ही प्रदेश में मुख्यमंत्री के चयन को लेकर हमेशा से ही जन भावनाओं की कद्र नही की। मसूरी, खटीमा और मुजफफरनगर गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की शहादत से राज्य बना। राज्य की घोषणा हई, मगर जिस मकसद से उत्तर प्रदेश से पृथक राज्य की मांग उठी थी। और राज्य बनाया गया। उस प्रदेश के लोगों की भावनाओं के विपरीत भाजपा ने स्व नित्यानंद स्वामी को सीएम बना दिया। नित्यानंद का चैतरफा विरोध हुआ था। माना जा रहा था कि भाजपा आलाकमान आखिरी क्षणों में राज्य के लोगों की भावनाओं के अनुरूप किसी पहाड़ी मूल के व्यक्ति को सीएम बनायेगी। ऐसा नही हुआ। उसके बाद बाद छोटे से कार्यकाल में स्व स्वामी को भी चलता कर भगत ंिसह कोश्यारी को कमान दी गई। और भाजपा 2002 का पहला आम चुनाव हार गई। पांच साल बाद जब भाजपा जब सत्ता में लौटी तो मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूरी और डा रमेश पोखरियाल के बीच लड़ाई का अंत नही हुआ। काबिलेगौर है कि ये दोनों ही पौड़ी जनपद से हैं। आश्चर्य नही होना चाहिए कि भाजपा ने मुख्यमंत्री के चयन में एक मात्र पौड़ी जनपद को ही तरजीह दी है। अब तक के अधिकांश सीएम पौड़ी से ही हुए हंै। उनमें कांग्रेस से सीएम रहे विजय बहुगुणा के अलावा भाजपा से तीरथ-़ि़़त्रवेंद्र , निशंक-खंडूरी शामिल हंै। कुमायूं से भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी, कांग्रेस के हरीश रावत और स्व एनडी तिवारी रहे हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान फिर से पौड़ी के विधायकों पर ही भरोसा जताते है। याा सीएम की कुर्सी कुूमायूं के पाले में जाएगी। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शनिवार को विधान मंडल दल की बैठक होगी, और तय हो जाएगा की कोन बनेगा सी एम , फिलवक्त संभावना है कि सतपाल महारज का रथ सबसे आगे चल रहा है। उसके बाद डा धन सिंह रावत भी रेस में बने हुए है। हालांकि तीरथ रावत के चयन के समय भी डा धन सिंह दौड़ में सबसे आगे थे। आरएसएस की पहली पसंद आज भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ही बने हुए है। अगर डा धन सिंह रावत और सतपाल महाराज को लेकर बात नही बनी तो डा धन सिंह त्रिवेंद्र के नाम को ठीक उसी अंदाज में आगे कर सकते है। जैसे त्रिवेंद्र सिंह ने अपनी कुर्सी छीन जाने के बाद डा धन सिंह के नाम को आगे सरका दिया था। काबिलेगौर यह भी है इस बार सीएम की कुर्सी कांटों भरी होगी। आम चुनाव पास है। भाजपा की अंतर्कलह कई गुना बढी होगी। पहले की गुटों में बंटी भाजपा में तीरथ भले ही सीधे तौर पर गुटबाजी न करें, मगर उनके मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री और उनके साथ काम करने वालों का स्वाभाविक तौर पर एक गुट नाराज जरूर होगा। ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भले ही जो भी नाम सुझाया हो। वह जनता की भावनाओं के अनुरूप काम करने में सफल होगा या नही। यह तो भविष्य के गर्भ में है। 2022 की डगर भाजपा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहेगी। भाजपा अगर कंफर्ट जोन में रहेगी तो वह मात्र कांग्रेस के अंदरूनी लड़ाई की वजह हो सकती है।