भाजपा ने उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी को शेयर सूचकांक जैसा मापा, गिरेंगे भी औधे मुहं और उठेंगे बुल की तरह

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अलसुबह से ही मेल-मुलाकात में जुट गए नवनियुक्त सीएम पुष्कर, सभी पूर्व सीएम से मिलने का बनाया पूरा प्लान, शाम पांच बजे लेंगे शपथ
देहरादून
लखनउ की छात्र राजनीति से उठकर उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी तक पहुंचे पुष्कर धामी भलीभांति जानते हैं कि उनके सिर पर जो ताज सजा है वह कांटों भरा है। मगर वे यह भी जानते हैं कि उन्हें आलाकमान बीच में चाहे भी तो हटा नही सकता। काबिलेगौर यह भी है कि दो मुख्यमंत्रियों को जिस बेरहमी से भाजपा आलाकमान ने हटाया। और हर बार पहले से कम उम्र के नेता को बुजुर्गवारों को चिढ़ाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी हैं। त्रिवेंद्र को हटाया तो उनसे कम उम्र वाले तीरथ को तीर-कमान सौंपी। तीरथ को हटाकर पुष्कर के सिर पर सेहरा बांध दिया। उससे पुष्कर का घबराना लाजिमी है। कहना न होगा कि जिस तरह से पुष्कर के सीएम की घोषणा होते ही कद्दावर नेताओं में बैचेनी पैदा हो गई। उससे पुष्कर के सामने चाहते हुए भी अपना कार्यकाल पूरा करना भी एक बडी चुनौती है। प्रचंड बंहुमत होने के बावजूद कहीं बीच में ही विधानसभा भंग न करनी पड़ी जाए। जिन बड़े नेताओं की सीएम बनने की हसरत पूरी नही हुई। वे बीते दिन से ही उधेडबुन में लग गए हैं। वैसे भी कुछ मंत्री और विधायक तो कांग्रेसी कल्चर से आए हैं। उन्हें मालूम है कि भाजपा में रहते हुए उनका सीएम की कुर्सी तक पहुंचना मुमकिन नही है। आरएसएस की शाखाओं को ज्वाइन करे बगैर भाजपा में रहते हुए भी इस कुर्सी की डगर में दर्जनों अड़चने हैं। क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के साथ ही विधायक संघ परिवार का निष्ठावान हो। और शीर्ष नेताओं की पूजा-अर्चना में कमी न रखे। वरना त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसा व्यवहार किया जा सकता है।
विडंबना यह है कि जब तक कोई सीएम राज्य में अपनी मनी और मस्सल पवार को बढ़ाने लगता है तब तक उसके पैर कतर दिए जाते है। यही वजह है कि नवनियुक्त सीएम पुष्कर ने एसेंडिंग आर्डर में पहले तीरथ, फिर त्रिवेंद्र और बुजुर्गवार भुवनचंद्र खंडूरी के आवास पर दस्तक दी। भगत सिंह कोश्यारी के बेहद करीबी होने का राजनीतिक लाभ और अनुभव पुष्कर को है। इसलिए खंडूरी से दूरी होने के बाद भी वे उनसे मुलाकात करने पहुंच गए। और शपथ ग्रहण करने से पहले न जाने कितने ही और नेताओं के घर माथा टेकना पड़ेगा। चूंकि कुर्सी मिली है तो बचा कर रखने की कौशलता को दिखाना ही पड़ेगा।
जोे भी हो, मगर भाजपा संभावनाओं की पार्टी है। और सही मायने में लोकतंत्र पर विश्वास रखती है। परिवारवाद से हटकर कब किस को उंची कुर्सी पर बिठा दे और अचानक गिरा दे। ऐसा तो स्टॉक एक्सचेंज के शेयर मार्केट में भी सूचकांक गिरते-पड़ते नही देखा गया। मगर उत्तराखंड में भाजपा का सूचकांक बढ़ाने में क्या पुष्कर सफल होंगे या 2008 की मंदी जैसे हालत देखने को मिलेंगे। यह तो समय ही बताएगा। लेकिन जिस तेजी से पुष्कर गढ़वाल के नेताओं से सपंर्क करने में जुटे हैं। यह उनकी राजनीतिक कौशलता का परिचय देता हैं। भाजपा में डा हरक सिंह, सुबोध उनियाल पूर्णकालिक राजनीति करते हैं। और उन्हें विजय बहुगुणा का संरक्षण भी मिला है। जो देश की राजधानी में बैठकर हर हथकंडे को अपनाना जानते है। नाराज महाराज क्या गुल खिलाएंगे। यह देखना बाकी होगा। इस बार सतपाल महाराज का सीएम बनना लगभग तय माना जा रहा था। बीजेपी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली भी न्यौता दिया था। मगर बात कहां पर बिगड़ी यह तो महाराज ही जानें। अलबत्ता कई मंत्री और विधायक दिल्ली के लिए रवाना होने वाले है।

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