देहरादून
दूून पुस्तकालय में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन
दूून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र तथा धाद संस्था की ओर से आज सायं अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा के दिवस पर भाषाई विरासत की यात्रा का एक कार्यक्रम केन्द्र के सभागार में किया गया। इसके तहत भाषा विषयक वार्ताओं का प्रस्तुतिकरण, उत्तराखण्ड की भाषा व सह भाषाओं की कविताओं का पाठ किया गया । कार्यक्रम में उत्तराखण्ड की लोकभाषाओं के प्रचार प्रसार व सम्वर्द्धन कार्य के लिए गढ़ भारती नामक पत्रिका के बीज अंकुरित करने वाले श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल जी तथा धुमाकोट धाद की शाखा को पल्लवित करने वाले श्री विनोद पटवाल जी को धाद मातृभाषा सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया दो किया गया।
पूर्व मुख्य सचिव श्री नृप सिंह नपलच्याल ने अपने संबोधन में उत्तराखण्ड की बोली भाषाओं के समुचित संरक्षण की बात कही। उन्होंने प्रबुद्ध जनों से लोकभाषाओं पर लेखन और उन्हें आम बोलचाल में अधिकाधिक उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
कुमाउनी भाषविद श्रीमती कमला पंत ने कहा कि किसी भी स्थान व समाज संस्कृति की प्रमुख संवाहक वहां की लोकभाषा होती है। भाषा मात्रा विचारों व भावों की संवाहक ही नहीं अपितु उस स्थान व समाज के ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक घटनाक्रमों साहित्य की विविध धाराओं और सामाजिक आंदोलन से प्रसूत परिवर्तनों की संरक्षिका है।
भाषा कार्यकर्ता और साहित्यकार शान्ति प्रकाश जिज्ञासु ने स्वागत संबोधन में कहा कि धाद यूनेस्को की 2010 की रिपोर्ट के बाद निरंतर भाषा के संरक्षण संवर्धन और विकास के लिए प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रही है इसके लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों और अन्य स्थानों पर जाकर भाषा के प्रचार प्रसार और संरक्षण करने के लिए कई कार्यक्रम किए उन्होंने अब तक किए गए कार्यक्रमों की एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की ।
साहित्यकार महेंद्र ध्यानी ने धाद की 38 वर्षों की यात्रा के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी और उत्तराखण्ड की लोकभाषाओं के सम्वर्द्धन को लेखन कार्य के माध्यम से निरन्तर बनाये रखना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुमित्रा जुगलान, साहित्यकार ने की।
इस अवसर पर गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी, रवांल्टी, नागपुरीऔर रं ल्वो भाषा के कवियों ने अपनी एक से बढकर एक शानदार कविताएं प्रस्तुत कर श्रोताओं की चाहवाही लूटी।
कुमाऊनी कवि साहित्यकार भारती पांडे ने चौसात में नई विधा की कविता ‘आली आली,निनुरी आंख मजि भौ सितलो’ व ‘कुकुर त हुनी वफादार पै बुकूनी लै’ सुनाई। वहीं रवांल्टी कवि महाबीर रवांल्टा ने अपनी कविता ‘तेरऽ बाऽन मुंईं काऽ न भोगी यां पापी दुन्या न काऽ न सुणाई’ व जौनसारी कवियत्री सुनीता चौहान ने कविता ‘शुणिया लोगो! जौनसार की बाता रीता हरे भरे डोखरे क्यारीयॉ’ और सुरेश स्नेही ने ‘हतास निराश उदास भुला नि होणु नि होणुनि होणु छोरा’ सुनाकर सबको आनंदित किया। इस अवसर पर बीना बैंजवाल, दिनेश डबराल, शान्ति नबियाल, शांति बिंजोला, रक्षा बौड़ाई, प्रिया देवली अर्चना गौड़, सिद्धि डोभाल, मनोज भट्ट गढ़वाली, मधुरवादिनी तिवारी अंजना कंडवाल, विनीता मैठाणी ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
इस अवसर पर दून पुस्तकालय एव शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने उपस्थित लोगों का अभिनन्दन करते हुए दून पुस्तकालय का संक्षिप्त परिचय दिया।
धाद की संयोजक बीना कंडारी ने भी कवियों के लिए स्वागत संबोधन किया। सह संयोजक प्रेमलता सजवाण ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस कार्यक्रम में नरेंद्र सिंह रावत, ,विनीता मैठाणी,सुंदर सिंह बिष्ट, कुलभूषण नैथानी, डॉ. राकेश भट्ट, कांता डंगवाल , डॉ. मुनिराम सकलानी, गीता देवली, विनोद बिष्ट,आलोक सरीन, शूरवीर भंडारी,पंकज, शैलेंद्र नौटियाल ,भागचंद, विनय कुकसाल, विनोद बिष्ट सहित विभिन्न साहित्यकार , युवा पाठक, लेखक व शहर के कई विद्वत लोग शामिल रहे।