क्या ‘एकलव्य’ का अंगूठा फिर कटेगा!@ यू पी में कब थमेगा द्वंद

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अशोक पांडेय

यूपी में नये महाभारत की जमीनी बिसात बिछ चुकी है। द्रोणाचार्य और कृपाचार्य की जुगुल जोड़ी युद्ध को लेकर डरी-सहमी है। सामाजिक न्याय और हिन्दुत्व के शामियाने के नीचे सेनाएं अलग-अलग खड़ी हैं। सावन के बादल काले भी हैं और भूरे भी। काले बादल डरावने हैं और भूरे बादल सुशासन की बारिश का दंभ भर रहे हैं। दिल्ली में बैठे “गुरूओं” ने अगर ‘एकलव्य’ का अंगूठा काट लिया तो 2027 के महाभारत में यूपी में भाजपा का ‘क्लीन बोल्ड’ होना तय है। यदि ऐसा हुआ तो ‘इंडिया’ का ‘क्लीन स्वीप’ यूपी में भारतीय राजनीति की नयी पगडंडी बनाएगा। यूपी में भाजपा ढाई दशक पहले की स्थिति में पहुंच गयी है। उस समय ‘हिन्दुत्व’ के महारथी के रूप में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, अटल और आडवाणी से भी अधिक लोकप्रिय हो गए थे। कुछ ऐसे ही लक्षण इस समय दिखाई दे रहे हैं। बाबा हिन्दुत्व के रथ के सबसे बड़े महारथी हैं। इस धर्मधुरी पर योगी की लोकप्रियता मोदी से कहीं अधिक है।
योगी आदित्यनाथ हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं और जनआकांक्षा के प्रतिनिधि है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय केंद्रीय नेतृत्व ब्राह्मणों के हाथ में था। कल्याण सिंह पिछड़ी जाति के थे, अब चक्र घूमा है, दिल्ली के गद्दीनशीन पिछड़े हैं और योगी आदित्यनाथ सवर्ण। यह बात दीगर है कि योगी के खिलाफ मोर्चा खोले केशव मौर्य पिछड़ी जाति के हैं और ब्रजेश पाठक ब्राह्मण हैं। यूपी का ब्राह्मण ब्रजेश पाठक को अपना जनप्रतिनिधि नहीं मानता है, वहीं केशव मौर्य कल्याण सिंह की तरह पिछड़ों के सर्वमान्य प्रतिनिधि नहीं हैं। केशव मौर्य चुनाव हारकर भी दिल्ली की कृपा पर उपमुख्यमंत्री हैं।
हिन्दुत्व और सामाजिक न्याय के बीच उभरे इस द्वंद्व युद्ध में कौन जीतेगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि ‘बाबा’ के बिना 2027 का ओलंपियाड जीतना भाजपा के लिए कठिन ही नही, कठोर होगा।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि योगी की शासकीय कठोरता और जाति विशेष के बड़े अफसरों की सद्दामशाही में भाजपा संगठन, सांसद, विधायक सभी असहज हैं। चंद आई.ए.एस, आई.पी.एस. अफसरों ने शासन को अपनी बपौती समझ लिया है। इसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में भुगतना भी पड़ा है, लेकिन फिर भी योगी के मुकाबले केशव या ब्रजेश के नेतृत्व का संदेश काफी कमजोर रहेगा। द्रुत गति से दौड़ने वाली भाजपा की दुर्गति अवश्यम्भावी है। योगी के नाम पर धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण आसान है, केशव और ब्रजेश के नाम पर नहीं। बाबा के बुलडोजर की काट सूबे में किसी और भाजपा नेता में नहीं है, यह बात अलग है कि विरोधियों के बुलडोजर का स्टेयरिंग दिल्ली में बैठे गुरू लोग संभाल रहे हैं।

फ़ेसबुक से साभार

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