देहरादून
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देशभर के उन चुनिंदा मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जो राजनीति के क्षेत्र में तेजी से यूथ आईकॉन बनकर उभर रहे हैं। बतौर मुख्यमंत्री उनके निर्णय, उनकी योजनाएं और गतिविधियां अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रेंड होती रहती हैं। काम और व्यवहार की बदौलत उनके फालोवर्स की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बेशक उनका कार्यकाल अभी महज दो साल का ही हुआ है लेकिन अन्य नेता भी उनकी कार्यशैली और तौरतरीकों को अपनाने लगे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सियासी बैकग्राण्ड क्या है? उनका परिवार कैसा है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें क्यों इतना महत्व दे रहा है? उनसे प्रदेश को क्या उम्मीदें हैं? इन सवालों के जवाब देने के लिए उनके जन्मदिवस से अच्छा मौका और क्या हो सकता है।
पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सितम्बर 1975 को पिथौरागढ़ जिले के टुंडी गांव में हुआ था। लखनऊ विश्व विद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट और इंडस्ट्रियल रिलेशंस में मास्टर डिग्री की। धामी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से ही छात्र राजनीति में कदम रखा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न पदों पर रहे। 2000 में पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद वह तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी बन गए। इसके बाद 2002 से 2008 तक वह भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। बस यही वो समय था जब पुष्कर सिंह धामी ने सड़कों पर संघर्ष किया। एक एक ईंट जोड़्कर उन्होंने युवा मोर्चा का कुनबा बढ़ाया। इसी दौरान उन्होंने पूरे प्रदेश में घूम घूमकर हजारों बेरोजगार युवाओं को संगठित कर विशाल रैलियां की थीं। बेरोजगारी के साथ ही विकास के मुद्दों को लेकर वह हमेशा मुखर रहे। तत्कालीन सरकार से राज्य के उद्योगों में युवाओं को 70 फीसदी आरक्षण दिलाने की घोषणा कराना उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में धामी को खटीमा से टिकट दिया गया और वह विधायक बने और उसके बाद फिर 2017 में विधायक बने।
2021 मे तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखण्ड के नए मुख्यमंत्री के रूप मे चुना, उन्होंने उत्तराखण्ड के 12 मुख्यमंत्री के रूप मे शपथ ली। चार जुलाई को पुष्कर धामी ने मुख्यमंत्री का पद सम्भाला और इसके एक महीने बाद कई योजनाओं का ऐलान किया। मसलन 10वीं-12वीं पास छात्रों को मुफ्त टैबलेट, खिलाड़ियों के लिए खेल नीति बनाने, जबरन धर्म परिवर्तन और जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने, नकल विरोधी कानून और यूसीसी लागू करने जैसे ऐलान इसमें शामिल थे। इससे आम लोगों के बीच ना केवल बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी। बल्कि धामी की छवि भी ऊंचाई छूने लगी। इस तरह अपने कुशल राजनीतिक दूर दृष्टि और कौशल के दम पर वह केंद्रीय नेतृत्व के साथ साथ जनता का दिल जीतने में सफल हो गए। अपने बेहद छोटे कार्यकाल में जमीन से जुड्कर काम करके धामी ने उत्तराखण्ड का इतिहास बदल दिया। उनके नेतृत्व में 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा दुबारा सत्ता में लौट आई, लेकिन धामी खटीमा विधानसभा से खुद चुनाव हार गए। हार के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा हाईकमान ने धामी पर भरोसा कायम रखा और उन्हें फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। दूसरे कार्यकाल के लगभग डेढ़ वर्ष पूरे कर चुके धामी ने राज्य में कार्यसंस्कृति में बदलाव, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, माफिया के नेटवर्क को ध्वस्त करने, कानून व्यवस्था में सुधार, स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में कई प्रभावी कदम उठाए हैं। अपने विरोधियों और विपक्ष के नेताओं को भी साथ लेकर चलने की कला में वह निपुण हैं। सबसे बड़ी बात है कि पुष्कर सिंह धामी का फोकस हमेशा युवाओं पर ज्यादा रहा है। 2002 में बतौर युवा मोर्चा अध्यक्ष युवाओं को साथ लेकर चलने का उनका अनुभव आज भी उनके काम आ रहा है। युवा पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए नकल माफिया के अन्तर्राज्यीय नेटवर्क को ध्वस्त करना धामी की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। अब मुख्यमंत्री धामी उत्तराखण्ड को वर्ष 2025 तक देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने के संकल्प को लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
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