“भारत और अमेरिका ‘अंतरिक्ष’ में नई उपलब्धियां प्राप्त करेंगे” : डॉ. जितेंद्र सिंह

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NEW DELHI

“संक्षेप में, यह कहना पर्याप्त होना चाहिए कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ‘अंतरिक्ष’ में नई उपलब्धियां  प्राप्त करने जा रहे हैं।” और, इसका श्रेय प्रधानमंत्री  मोदी को जाता है, जिन्होंने पिछले 9 वर्षों के दौरान ऐसे अपरंपरागत एवं अग्रगामी निर्णयों की एक श्रृंखला शुरू की है जिन्होंने  जिसने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमताओं में एक लंबी छलांग लगाने में सक्षम बनाया और जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका, जिसने हमसे कई वर्ष पहले अपनी अंतरिक्ष यात्रा शुरू की थी, आज एक समान भागीदार के रूप में हमारे साथ सहयोग की मांग कर रहा है ।

यह बात केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ) , कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने  नई दिल्ली में मीडिया को प्रधानमंत्री  की वर्तमान में चल रही अमेरिका यात्रा के दौरान किए गए कई महत्वपूर्ण निर्णयों और समझौतों, विशेष रूप से “आर्टेमिस समझौते” पर हस्ताक्षर करने और 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए संयुक्त भारत-अमेरिका मिशन के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए कही।

डॉ. सिंह ने कहा, “क्या हमें इस अनुभूति से अधिक गर्व हो सकता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा देश, जिसने चंद्रमा की सतह पर पहले मानव  को तब उतारा था जब हम चंद्रमा के बारे में नर्सरी कक्षाओं में कविताएं गा रहे थे, वह आज चंद्रमा मिशन पर हमारे इनपुट और हमारी विशेषज्ञता की मांग कर रहा है।”

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मीडिया को विस्तृत जानकारी देते हुए मंत्री  ने कहा कि आर्टेमिस समझौते का उद्देश्य सिद्धांतों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के साथ एक ऐसी सामान्य दूरदृष्टि है जिससे हम पारदर्शिता के साथ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए एक-दूसरे की गतिविधियों को पूरक कर सकें और हानिकारक गतिविधियों को टालने के लिए मिलकर काम कर सकें।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, कि दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए संयुक्त मिशन, जो आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करने से अलग है, 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए संयुक्त मिशन के लिए एक रूपरेखा विकसित करेगा, जिसकी चंद्रमा और उसके बाद मंगल और अन्य ग्रहों की वास्तविकताओं के करीब पहुंचने के लिए दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच घनिष्ठ सहयोग की संभावना के लिए परिकल्पना संयुक्त राज्य अमेरिका ने की है ।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए सेमीकंडक्टर्स पर, माइक्रोन भारत सरकार से अतिरिक्त वित्तीय सहायता के साथ 80 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा। इसी तरह, यूएस क्वांटम कंसोर्टियम ने भारतीय क्वांटम उद्योग का स्वागत किया है और उसे अपने सदस्यों के रूप में आमंत्रित किया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग पर हस्ताक्षरित यह समझौता हमारे द्विपक्षीय संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह  ने कहा कि  ”जैसा कि प्रधानमन्त्री  मोदी ने कहा, ‘अमेरिका के साथ सहयोग के लिए असीम आकाश भी सीमा नहीं है।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग के एक भाग के रूप में भारत अगले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में योगदान देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कल गुरुवार को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठक के बाद व्हाइट हाउस में इसकी पुष्टि कर चुके हैं I

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नासा के साथ मिलकर काम करने की संभावना है क्योंकि वह 2025 तक मानवयुक्त मिशन के साथ चंद्रमा पर वापस लौटने की योजना बना रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान यात्रा के दौरान भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संयुक्त बयान में कहा गया कि नासा अपनी एक सुविधा में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को “उन्नत प्रशिक्षण” प्रदान करेगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आर्टेमिस समझौते के अनुसार, भारत सामान्य व्यवस्था  (प्रोटोकॉल) के अंतर्गत  चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की खोज के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग ले सकता है। यह समझौता अंतरिक्ष क्षेत्र विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के आयात पर प्रतिबंधों में राहत  मिलने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा, जिससे भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजारों के लिए प्रणालियाँ विकसित करने और नवाचार करने में लाभ होगा। यह संयुक्त रूप से और अधिक वैज्ञानिक कार्यक्रमों में भारत की भागीदारी की सुविधा प्रदान करने के साथ ही मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों सहित विभिन्न गतिविधियों में दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के लिए सामान्य मानकों तक पहुंच की अनुमति देगा और माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम, अंतरिक्ष सुरक्षा आदि सहित अधिक रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिका के साथ मजबूत भागीदारी की अनुमति देगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज अमेरिका हमारे साथ साझेदारी के महत्व को समझ रहा  है। “हालांकि भारत और अमेरिका लंबे समय से अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार की पिछले नौ वर्षों की यात्रा वास्तव में विकास पथ पर आगे बढ़ी है। उन्होंने कहा कि भारत अब अंतरिक्ष अन्वेषण में पीछे नहीं है और आज,हम सुदूर एवं गहन अंतरिक्ष मिशनों में बराबर के भागीदार हैं”। डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि अमेरिका की और से वस्तुतः कोई प्रतिबंध नहीं है और न ही किसी प्रौद्योगिकी से इनकार किया गया है। उन्होंने कहा कि ”वास्तव में, हम आज तकनीकी रूप से सक्षम हैं।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इसरो ने वैश्विक ग्राहकों के लिए उपग्रह प्रक्षेपित  करके विदेशी मुद्रा अर्जित की है। इसरो ने अपनी वाणिज्यिक शाखा के साथ मिलकर ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) के माध्यम से  34 देशों के 385 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। उन्होंने कहा कि  “इस राजस्व का लगभग 90% पिछले नौ वर्षों में प्राप्त हुआ है।”

आर्टेमिस समझौते पर 13 अक्टूबर, 2020 को आठ संस्थापक देशों-ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़मबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ब्रिटेन (यूके) और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। इसके सदस्यों में जापान, फ्रांस, न्यूजीलैंड, यूके, कनाडा, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगी शामिल हैं जबकि रवांडा, नाइजीरिया आदि अफ्रीकी देश नए भागीदार हैं। 22 यूरोपीय देशों में से केवल आठ (लक्ज़मबर्ग, इटली, यूके, रोमानिया, पोलैंड, फ्रांस, चेक गणराज्य और स्पेन) ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

आर्टेमिस समझौता एक गैर-बाध्यकारी समझौता है जिसमें इसी भी प्रकार की  वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं है। इन समझौतों का उद्देश्य आर्टेमिस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से नागरिक अन्वेषण और बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग की व्यवस्था  को आगे बढ़ाने के लिए सिद्धांतों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के व्यावहारिक सेट के माध्यम से एक सर्वमान्य दृष्टिकोण को स्थापित करना है। बाह्य अंतरिक्ष में गतिविधियों को मूर्तरूप देने में सिद्धांतों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के व्यावहारिक सेट का पालन करने का उद्देश्य संचालन की सुरक्षा को बढ़ाना, अनिश्चितता को कम करना और समस्त मानव जाति के लिए अंतरिक्ष के स्थायी और लाभकारी उपयोग को बढ़ावा देना है। यह समझौते यहां वर्णित सिद्धांतों के प्रति एक राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें से कई बाह्य अंतरिक्ष संधि और अन्य उपबन्धों में निहित महत्वपूर्ण दायित्वों के परिचालनात्मक कार्यान्वयन के लिए सुविधा प्रदान करते हैं।

इन समझौतों में निर्धारित सिद्धांतों का उद्देश्य उन्हें प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता की नागरिक अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा संचालित नागरिक अंतरिक्ष क्रियाकलापों एवं गतिविधियों पर लागू करना है। ये गतिविधियाँ चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु, क्षुद्रग्रहों पर, उनकी सतहों और उप सतहों सहित, साथ ही चंद्रमा या मंगल की कक्षा में, पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदुओं में और इन आकाशीय पिंडों एवं स्थानों  के बीच पारगमन में संचालित हो सकती हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं का उद्देश्य अपनी ओर से कार्य करने वाली संस्थाओं के साथ मिशन योजना और संविदात्मक तंत्र जैसे उचित उपाय करके अपनी गतिविधियों के माध्यम से इन समझौतों में निर्धारित सिद्धांतों को अपनाना  हो सकता है ।

आर्टेमिस समझौते के अंतर्गत सभी क्रियाकलाप शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए सम्पन्न किए जाएंगे। भागीदार देशों को सार्वजनिक रूप से नीतियों और योजनाओं का उल्लेख करके पारदर्शिता के सिद्धांत को बनाए रखना है। भागीदार राष्ट्र खुले अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उपयोग करते हुए आवश्यकता पड़ने पर नए मानक विकसित करें और अंतरसंचालनीयता का समर्थन करने का प्रयास करें। भागीदार राष्ट्र संकट में फंसे अंतरिक्ष यात्रियों को सहायता प्रदान करने के लिए सभी उचित कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और यह निर्धारित करते हैं कि उनमें से किसे पंजीकरण घोषणा (कन्वेंशन)  के अनुसार प्रासंगिक अंतरिक्ष वस्तु को पंजीकृत करना चाहिए।

भागीदार राष्ट्र यह सुनिश्चित करने के लिए अपने वैज्ञानिक डेटा को सार्वजनिक रूप से जारी करने के लिए बाध्य हैं कि पूरा विश्व इस आर्टेमिस यात्रा से लाभान्वित हो सके। सदस्य देशों को अपनी अंतरिक्ष गतिविधियों के बारे में संयुक्त राष्ट्र को सूचित पड़ेगा। भागीदार राष्ट्र किसी भी हानिकारक हस्तक्षेप से बचेंगे और बाह्य अन्तरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग हेतु संयुक्त राष्ट्र समिति (यूनाइटेड नेशंस कमिटी ऑन पीसफुल यूज ऑफ़ आउटर स्पेस–यूएनसीओपीयूओएस) के अंतरिक्ष मलबे को घटाने सम्बन्धी दिशानिर्देशों में प्रतिबिंबित सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरू से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का अंग रहा है। चंद्रमा पर इसरो का पहला मिशन, चंद्रयान-1, अपने अंतरराष्ट्रीय पेलोड के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक अनुकरणीय उदाहरण रहा है। इसने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्यातियां भी अर्जित की है और चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की इसरो-नासा की संयुक्त खोज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो इस तरह के पिछले किसी भी मिशन में प्राप्त नहीं किया गया था।

इसरो और नासा पृथ्वी विज्ञान अध्ययन के लिए नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (एनआईएसएआर) नामक एक संयुक्त उपग्रह मिशन को भी मूर्तरूप दे रहे हैं। इसरो के प्रतिष्ठित गगनयान कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में, मानव अंतरिक्ष उड़ान में विशेषज्ञता रखने वाले देशों और अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग के अवसर खोजे जा रहे हैं। ये सहयोग गतिविधियाँ अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, जीवन समर्थन प्रणाली, विकिरण से परिरक्षण समाधान इत्यादि पर केंद्रित हैं।

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