OBC महिला आरक्षण@सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए लांचिंग पैड

उत्तराखंड मसूरी राजनीति

MUSSOORIE

ख्यातिलब्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने जो कालजयी रचना दी कि सदानी नि रैंण झुतु तेरी जमींदारी ने मसूरी के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम को मानो जीवंत कर दिया हो। संविधान और लोकतंत्र में आस्था विश्वास रखने वालों के लिए यह अत्यंत ही सुखद अनुभूति देता है। यह बात दीगर है कि पुराने कथित धाकड् नेता जो अपनी चुनावी राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाना चाहते थे, उन्हें जरूर आघात लगा होगा। और वर्षों तक सत्ता की मलाई चाट रहे लोग अभी भी इस जुगत में लगे हो कि उन्हें अब भी अवसर मिलेगा। लेकिन इस आपदा में अवसर तो आधा आबादी के चैथे हिस्से को ही सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए लांचिंग पैड मिलेगा। और इस मौके को उत्सवधर्मिता के रूप देखा और लिया जाना चाहिए। प्रदेश में भाजपनीत सरकार ने चाहे जिस भी मंशा से ओबीसी महिला आरक्षित किया हो। आरक्षण को तो देर-सबेर लागू होना ही था। यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि पहले किसको आरक्षण मिले। अनुसूचित जाति, महिला या सामान्य, अनुसूचित जाति या महिला को,  लेकिन यह सच्चाई है कि मसूरी को पुरूषों की उस हेकडी से बाहर निकाल दिया। जिसका दंभ वे दशकों से भरकर लोगों को यानि खासतौर पर वोटरों को क्षेत्र, जाति और धनबल से अपनी और खींचने का कुत्सित प्रयार कर रहे थे। हालांकि यह भी सच्चाई है कि राजनीति और प्यार में सब जायज है। और बिना जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र और धन के राजनीति करना असंभव सा होने लगा है।
आरक्षण के आसरे महिलाओं के लिए यह बड़ा अवसर है जब उन्हीं के समाज की बहिनों को लेवल प्लेयिंग फील्ड मिलेगा। यह इस बात इससे भी साबित हो गई कि बीते दिन तक करीब एक दर्जन महिलाओं ने चुनाव में जाने की अपनी इच्छा जतायी। उन महिलाओं को शुभकामनाएं। जो लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाली हैं। बशर्ते उनके अरमान पूरे हुए हो, मगर अभी हसरत बाकी है।
इस आरक्षण के आसरे मसूरी जैसे बहु-संस्कृति, धर्म, जाति और क्षेत्र से आच्छादित विविधताओं वाले शहर में बीते दिन से एक अजीब-सी खामोशी ओढ़ी हुई है। जिसका राजनीतिक विश्लेषक और समाजशास्त्री अपनी -अपनी तरह से तर्क दे रहे हंै। अधिकांश लोगों का मानना है कि भले ही आरक्षण लागू करने में सरकार ने पक्षपातपूर्ण या एकतरफा रवैये अख्तियार किया हो। महज सवा चार फीसदी ओबीसी को महिला आरक्षण दिया हो, जो सीधे तौर पर गैर संवैधानिक-सा प्रतीत हो रहा है। जिसका जिक्र बीते दिन ही विकासनगर के विधायक और उत्तराखंड के सबसे अधिक जानकार और संविधान के ज्ञाता मुन्ना सिंह चौहान ने भी चिंता व्यक्त की बल्कि न्यायालय तक जाने की हुंकार भी भरी। तो लगता है कि दाल में कुछ काला है। सवाल यह है कि चार फीसदी को सबसे उंचे पद पर बिठा दिया जाएगा। और 95 फीसदी लोग पीछे धकेल दिए जाएंगे तो ऐसी लोकतांत्रिक संस्थाओं में आखिर विश्वास कब तक जिंदा रहेगा। और यह भी काबिलेगौर है कि संविधान में आरक्षण की ऐसी व्यवस्था मौजूद है तो आज तक इन महिलाओं को मौका क्यों नही दिया गया। यानि सरकारों कीं रीति-नीतियों में भी बेईमानी है। सरकार किसी भी दल की हो। वह कंफर्ट जोन में रहना चाहती है।
अब थोड़ा चर्चा इस पर की जाए कि आरक्षण से क्या खोया और क्या पाया। जो हाल में आरक्षण घोषित किया गया। उसमें उलटफेर हो। संभावना तो कम है। मगर क्रिकेट और राजनीति संभावना पर टीका हुआ है। जब मोदी हो तो सब कुछ मुमकिन है। भामाशाह भी दिल्ली दरबार में हाजिरी देने गए हैं। आज रात नारद जी सपने में आए तो बताया कि इस आरक्षण के बाद तो राजनीतिक हलकों में इतनी बड़ी धमाचैकड़ी मची है कि सब कोर्ट में दस्तक दे रहे हैं। जब मसूरी बिक रही थी। बदहाल हो रही थी। जब यहां कंक्रीट के जंगल उग रहे थे। तब इन नेताओं की मुंह पर दही जमी थीं, आज चैतरफा ़त्राहिमाम-त्राहिमाम हो रहा है। महिलाओं को आगे क्यों नही आने देते। क्योंकि दिल्ली, मुम्बई और अन्य महानगरों के भूमाफियाओं से सांठ-गांठ है। प्रोजेक्ट रूक जाएंगे। चिंता यह है कि फलां की ब्वारी अगर अध्यक्ष बन जाएंगी तो मेरा प्रोजेक्ट खटाई में। असल मुद्दा यह है। और वोटरों को झोंक दिया जाएगा कई फिरको में। जौनपुरी, रैका-धारमंडल, प्रतापनगर, कीर्तिनगर, बडियारगढी, पौड़ी, टिहरी, ठाकुर, बामण। हिंदु-मुस्लिम, बनिया पंजाबी, और न जाने नारद जी तो सपने में बहुत-सी बातें बता रहे थे। तब तक सपना टूट गया।
अब इस आरक्षण के आसरे तत्कालिक लाभ यह कि पिछले एक साल से भाई-भाई और दोस्त-दोस्तों के बीच जो खाई पैदा हो गई थी। वह मानों इस आरक्षण ने पाट दी हो। कुछ महिलाओं के विरोध और गुस्सैले अंदाज को छोड़कर। वह जायज भी है। तभी लोकतंत्र की जीत है। विरोध न हो तो लोकतंत्र, तानाशाही और सामंती का प्रतीक है। इसलिए बीते दिन कुछ महिलाएं एक रेस्तरां में एकत्र हुई। जिनमें सभी धर्म-जाति और राजनीतिक दल की थी। उनकी मौजूदगी को भी रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि आरक्षण का स्वागत मगर ओबीसी महिला गलत। लेकिन महिलाओं के लिए तो लांचिंग पैड है। अगली बारी आपकी की ही है। राजनीति में व्यक्ति 99 साल तक भी आस लगाए रखता है। अगर जिंदा है तो। अपने प्रदेश में ऐसे अनेकांे उदाहरण है जिस व्यक्ति को 2003 में सीएम बनना था। उसकी बारी दस बारह साल बाद आई। और जिसने कभी सीएम बनने की कल्पना नही की। वह झट से बन गया। राजप्रसाद कभी भी और किसी भी रूप में मिल सकता है।
पहाड़ों की रानी मसूरी में ओबीसी महिला आरक्षण की घोषणा के बाद उतनी ही खुशगवार लगी जितनी बर्फवारी के बाद। और मानों वर्षो से जिन रिश्तों पर बर्फ जमी थी। वह पिघलने लगी हो।

फिर हिंदी के महान कवि दुष्यंत की कविता -हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। मेरे सीने में न सही तेरी सीने में सही हो कहीं भी आग निकलनी चाहिए,, सिर्फ हंगामा खड़ा करना मकसद नही कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए।
जो आपस में एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नही करते थे। मुबारकबाद देने लगे। क्योंकि हम तो डूबे सनम तुम्हे लेकर डूबे। हम नही तो तुम भी नही। यह खेला किसी विधायक और मंत्री ने नही खेला। आप गलतफहमी में न रहे। इसका खुलासा फिर कभी। जय मसूरी जय लोकतंत्र

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