वैली आफ वर्डस शब्दावली लिटरेचर फेस्टिवल @उत्तराखंड में लेखक गांव बनाया जाएगा-निशंक

उत्तराखंड देहरादून साहित्य

मसूरी/देहरादून/

शूरवीर सिंह भंडारी
वैली आफ वर्डस शब्दावली लिटरेचर फेस्टिवल के समापन दिवस पर आयोजित विभिन्न साहित्यिक सत्रों में साहित्यकारों, कथाकारों, पर्यावणविद् और कलाकारों ने समां बांधा। बेहद रोचक सत्र के साथ समापन मौके पर बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद डां रमेश पोखरियाल निशंक ने लेखक गांव की घोषणा कर श्रोताओं और आयोजकों की मानो मनोकामना ही पूरी कर दी हो। उन्होंने कहा कि जल्द ही उत्तराखंड में लेखक गांव बनाया जाएगा। जिससे तमाम लेखकों को एक अद्द ठोर-ठिकाना मिलेगा। उससे रचताधर्मिता में निसंदेह गुणात्मक वृ़द्वि होगी।
वैली आफ वर्डस शब्दावली के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय साहित्यिक सम्मेलन में देश और दूनियाभर के करीब सौ से अधिक विभिन्न क्षेत्रों के मुर्धन्य लोगों ने हिस्सा लिया। इस बहुरंगी छटा बिखेरे समारोह में जहां पहाड़ के गाड-गदेरे और नागाधिराज हिमालय के प्रति संवेदनशील होने की परवाह की। वही अंग्रेजी और हिंदी के साहित्यकारों ने अपनी कृतियों के माध्यम से श्रोताओं को अभिभूत किया।
इस लिटरेचर फेस्टिवल में करीब तीन दर्जन से अधिक सत्र आहूत किए गए। आयोजकों के मन मस्तिष्क में फेस्टिवल को बड़े फलक पर ले जाने की भरपूर कोशिश को पंख लगे है। नवोदित लेखकों को पर्याप्त मौका मिला। अव्वल तो इस फेस्टिवल क्यूरेटर और संचालकों में अधिकांश जिज्ञासु युवाओं को शामिल कर साहित्य के प्रति उनकी जिजीविषा को नये आयाम देना जैसा था। हिंदी साहित्य और अंग्रेजी साहित्य के स्वनाम धन्य हस्ताक्षरों के अलावा नवोदित लेखकों ने भी श्रोताओं के मन मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ी है।
फेस्टिवल के दूसरे दिन के सत्र का प्रारंभ मसूरी के लेखक अनमोल जैन की रोचक ऐतिहासिक कहानियों से शुरू हुआ। सत्र में इरा चैहान चेयरपर्सन थी। वही जाने-माने पत्रकार योगेश कुमार के रोचक प्रश्नों की बौछार और लेखक जैन की हाजिर जबावी ने श्रोताओं को अपनी और आकर्षित करने के लिए मजबूर कर दिया। अनमोल जैन की हाल में प्रकाशित पुस्तक वंडरिंग इन द लैंड आफ मिस्ट मसूरी में कई घटनाओं के रहस्योद्घाटन बुक स्टाॅल तक पहुंचने में मद्दगार साबित हुई। इसके साथ ही हिंदुस्तान की जानी-मानी पत्रकार और लेखिका मृणाल पांडे ने सत्र ने मौजूदा पत्रकारिता और अस्सी के दशक की पत्रकारिता के विभेद को रेखांकित किया। इस सत्र में अमर उजाला के संपादक संजय अभिज्ञान ने ऐसे कई सवालों को लेकर श्रोताओं के कई अनसुलझे पहलुओं पर गहराई से सोचने के लिए विवश कर दिया।
पर्यावरण विद् चंडीप्रसाद भट्ट और हिमालय में ग्लेशियर पर गहर अध्ययन करने वाले पीएस नेगी ने विभिन्न पर्यावरणीय पहलुओं पर चिंता भी जताई और भविष्य के लिए आगाह भी किया। इस सत्र मे चेयरपर्सन पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे थे। और सवालों को लेकर सजग रहने वाले यूकाॅस्ट के पूर्व निदेशक राजेंद्र डोभाल की हिमालयी क्षेत्रों में हो रही उथल-पुथल पर पैनी नजर को श्रोताओं ने खूब सराहा। कवि सम्मेलन में पूर्व मुख्य सचिव इंदु पांडे ने कविताएं सुनाकर मंत्र मुग्ध कर दिया। बुद्विनाथ मिश्र सरीखे हिंदी के पारखी कवि ने भी रोचकता पैदा की। अन्य कवियों ने समा बांधा। अंतिम सत्र में डा रमेश पोखरियाल के रचना संसार पर हिंदी के मर्मज्ञ डा सुशील उपाध्याय ने बड़ी साफगोई और बेबाक सवालों की बौछार की तो डा निशंक ने अपने निराले अंदाज में श्रोताओं को अंदर तक झकझौर दिया। डा निशंक ने बचपने की यादों को ताजा कर सभागार में भावुकता पैदा कर दी। इतना ही नही डा निशंक ने यहां तक कहा कि आने वाला समय हिंदी साहित्य का अमृतकाल जैसा ही होगा। और बाकी भाषाएं पीछे छूट जाएगी। समापन समारोह का संचालन अनूप नौटियाल ने किया। फेस्टिवल के कर्ताधर्ता और संयोजक पूर्व आईएएस संजीव चोपड़ा ने इस आयोजन के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। पूरे कार्यक्रम के दौरान साहित्यकार और पूर्व डीजीपी अनिल रतूडी, अपर मुख्य सचिव राधा रतूडी, विख्यात लेखक गणेश सैली के अलावा दून विश्ववि़धालय की कुलपति डा सुरेखा डंगवाल, पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार, वरिष्ठ साहित्यकार सविता मोहन, डा सुधा पांडे, डा विनय कुमार सिंह, डा संजय, मुनीराम सकलानी, के साथ ही कई नामचीन हस्तियों ने प्रतिभाग किया। आयोजक मंडल में डा तान्या सेली बख्शी के अलावा कामरेड सुरेंद्र सिंह सजवाण, डा एस कोठियाल, पुष्पा पडियार समेत सैकड़ों लोग इस फेस्टिवल के गवाह बने।

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