सीएम साहब इनवेस्टर समिट से पहले पहाड़ों की आबोहवा की फिक्र करना भी जरूरी रसूखदारों पर रहम और आम पर बेरहमी, मानो एमडीडीए का मूलमंत्र बन गया,

मसूरी

मसूरी। पर्यटन नगरी मसूरी में लगातार हो रहे अवैध निर्माणों पर अंकुश लगाने में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण पूरी तरह से विफल होता नजर आ रहा है। और वो दिन दूर नही जब देश-विदेश में अपनी आबोहवा और सुंदरता के लिए जाने जाने वाली पर्यटन नगरी कुरूप दासी जैसी नजर आएगी। सीएम साहब इन दानवी बिल्डर और प्रकृति के दुश्मनों से पर्यटन नगरी को बचा लीजिए।
पहाड़ों की रानी मसूरी के  सीमांतर्गत ऋषि आश्रम से लेकर भट्टा-क्यारकुली, नागमंदिर मार्ग, पार्क इस्टेट के आसपास से लेकर मालरोड, कैमल्सबैक रोड, कैंपटी रोड समेत समूची इलाके में जिस तेजी से निर्माण कार्य चल रहे है। वन क्षेत्र और गैर वन क्षेत्र में नक्शों के इतर निर्माण कार्य तेजी से चल रहे है।
आश्चर्यजनक यह है कि कैमल्स बैक रोड पर कई कथित धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा भारी भरकम निर्माण कार्य किए जा रहे हंै। यही आलम भट्टा क्यार कुली, नागदेवता यानि कार्ट मैकंजी रोड पर बन रहे बहुमंजिली इमारतों, मालरोड पर होटलों द्वारा आए दिन बेसमेंट खोलकर कैफे और रेस्टारेंट बनाए जा रहे हंै। इस बावत राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया पर खुला पत्र भी लिखा। मगर क्या मजाल की प्राधिकरण की कानों में जूूं तक रेंगी हो। नगर की प्रमुख समाजसेवी पर्यावरणवादी और मसूरी की नैसर्गिक सुंदरता को बचाने के लिए लगातार पीएमओ और सीएम पोर्टल पर अनाधिकृत निर्माण की शिकायत करने वाली निधि बंहुगुणा समेत दर्जनों ऐसे लोग जो मसूरी की चिंता करते हंै। उनकी शिकायतों पर क्या हो रहा है। सब भगवान भरोसे। शिकायतों का निस्तारण हो रहा होता तो जिस बेतहाशा से मसूरी की हरियाली और सीने पर आरी चलाकर पहाड़ियों को रौंदकर कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है। उपर से प्राधिकरण रसूखदारों रहम करता दिखाई देता है। जबकि आम व्यक्ति रिटायरमेंट की पूरी पूंजी को झोंखकर दो कमरों को भवन बनाता है उस पर तत्काल कार्रवाई करने प्राधिकरण का अमला पहुंच जाता है। मगर बहुमंजिली इमारतों के बगल से गुजरते प्राधिकरण के अधिकारियों की नजर नही पड़ती या नजर इनायत हो जाती है।
एमडीडीए के साथ ही वन विभाग व खनन विभाग की भूमिका भी इस दिशा में कमतर नही आंकी जाती। वन विभाग पेड़ों को काटने की परिमशन धड़ल्ले से दे देता है। और मौके पर पता चलता है कि हरे पेड़ पर भी आरी चल गई। और यहां पर बिल्डर द्वारा एक प्रचलन यह भी कि पेड़ों को सूखाने का काम बड़ी ही तरतीब से किया जाता है। पेड़ों की जड़ों में न जाने किस किस्म का कैमिकल डाला जाता है और पेड़ मरणासन्न को प्राप्त हो जाता है।
इस संबंध में जब एमडीडीए के अधिशासी अभियंता अतुल गुप्ता ने बताया कि कई प्रकरण उनकी जानकारी में नहीं है। सहायक अभियंता अभिषेक भारद्वाज ने कहते है कि अवैध निर्माणों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है। बावजूद इसके नगर में निर्माण कार्य की बाढ़ आ गई। पर्यावरणविद्ों का मानना है कि मसूरी में जोशीमठ जैसे हालात कब पैदा हो जाय। कुछ नही कहा जा सकता। इसलिए मसूरी की नैसर्गिक सुंदरता को बचाने के लिए संबंधित विभागों के साथ ही आम नागरिक की जिम्मेदारी भी है।

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