अंग्रेजी के जाने-माने लेखक बिल एटकिन का निधन, साहित्यकारों में शोक

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अंग्रेजी के सुविख्यात लेखक बिल एटकिन ने बीती रात को देहरादून के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। एटकिन ब्रिट्रिश मूल के लेखक थे। वेे स्काॅटलैंड में पैदा हुए। बाद में कई दशकों से भारत में रहने लगे और यही की नागरिकता ले ली। उनके निधन पर देशभर के साहित्यकारों में गहरा शोक छा गया। बिल एटकिन को मसूरी में खांटी का पहाड़ी मेन के रूप में जाना जाता रहा है। उनमें पहाडियत कूट-कूटकर भरी थी। उनके रचना संसार में गढ़वाल और उत्तराखंड के हिमखंड, नदी और उत्तुंग हिमालय श्रृखंलाओं को अद्भुत वर्णन मिलता है। एटकिन के यात्रा वृतांत रोमांचक है। उन्होंने करीब दो दर्जन पुस्तकें लिखी।
बिल एटकिन का जन्म 1834 में तुलीबाॅडी यूके में हुआ था। और उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा में ब्रिट्रेन में ही हुई। उन्हें रस्किन बांड के समकालीन लेखक के तौर पर भी माना जा सकता है। और वे 1959 में भारत में आ गए थे। और तब से यही के होकर रह गए। बिल मौजूदा समय में वाइनवर्ग ऐलन स्कूल के समीप बालाहिसार में में रहते थे। बिल एटकिन मसूरी के लोगों के दिलो में बसे थे। अभी हाल ही के दिनों में बिल हर सुबह और शाम को टिहरी बाईपास रोड पर कई किलोमीटर की वाॅक पर अक्सर मिल जाया करते थे। बेहतर लेखक के साथ ही नेक और मिलनसार इंसान को मसूरी ने खो दिया।
बिल से यू ंतो कई बार मुलाकात सड़क चलते होती रहती थी। जब मै। अपने बच्चों को ऐलन स्कूल में सुबह छोड़ने जाया करता था। तो बिल वाॅक कर लौटते थे। तब नमस्कार होती थी। दो साल पहले पत्रकार अनमोल जैन की पुस्तक के लोकार्पण समारोह में मसूरी के सभी प्रतिष्ठित लेखकों से मिलने का पावन अवसर मिला।
बिल एटकिन की प्रमुख पुस्तकों में नंदादेवी मेला, सत्यसाई बाबा, ट्रेवल बाई लेजर लाइन, टचिंग अपआॅन द हिमालयष् सेवन सेक्रिड रिवर, राइडिंग द रेंजेंज, 1000 हिमालयन क्विज आदि ।
अंग्रेजी के लेखक प्रो गणेश सैली ने उनके निधन पर शोक जताया और कहा कि मसूरी में ने सच्चा गढ़वाली लेखक खो दिया। उन्होंने कहा कि एटकिन अच्छे लेखक के साथ ही अच्छे मित्र, और समाज में उन्हें एक सच्चा पहाड़ी माना जाता रहा है।

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