सीएम साहब ! “पहाड़ों की रानी मसूरी को जोशीमठ बनने से बचाओ”

उत्तराखंड देहरादून मसूरी

शूरवीर सिंह भंडारी, मसूरी
सीएम साहब आपको जरा अटापटा जरूर लगेगा कि राजधानी से महज 30 किलोमीटर दूर और आपके आवास से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्वविख्यात पर्यटन नगरी मसूरी अर्थात क्वीन आॅफ हिल्स अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए जानी जाती है। मगर आज ऐसा क्या हो गया कि मसूरी के लोग आपसे इसे बचाने की गुहार करने लगे है। हाॅ, सच्चाई है जिस तरह से नैसर्गिक छटा के विरोधी और नवधनाडय वर्ग ने मसूरी को अपनी ऐषगाह बनाने के लिए इसका चीर हरण किया है। उससे इसे जोशीमठ बनने में कितना समय लगेगा। यह तो भूगर्भ शास्त्री ठीक से बता पाएंगे। लेकिन जिस तेजी से मसूरी की पहाड़ियों की हरियाली को नष्टकर और उनके बीच में जेसीबी के पीले पंजे से निरीह चट्टानों के सीने को चीर दिया जा रहा है। बेरहमी से खनन कर अवैध रूप से कंक्रीट के जंगल उग आए हंै। उससे जोषीमठ बनने का डर नगरवासियों को सताने लगा है। दिल्ली और अन्य महानगरों के सेठ-साहूकारों को केवल यहां पर मस्ती करनी है। और पुलकित आर्य के जैसे कुकर्मी बेटों के लिए रिसोर्ट खड़े करने हैं। ताकि उनके बिगडैल बेटे महानगरीय संस्कृति को पहाड़ पर लाद सकें। और यहां की भोली-भाली अंकिता जैसी बालिकाओं को अपने हवस का षिकार बनने के लिए विवष करे। इन सेठ-साहूकारों को न तो पहाड़ से प्रेम है और न ही यहां की हरियाली से। लेकिन पहाड़ों की आबोहवा का लुत्फ लेना चाहते हैं। बसना चाहते है। मसूरी से चंबा तो ये लोग बस ही ही गए। और यहां का आधार कार्ड भी बना लिया। पांचतारा होटल बनाकर पहाड़ियों की जमीनें औने-पौने दामों में खरीदकर अब इन्हें चैकीदार बना दिया। यहां तक भी चल सकता था कि जमीन बेचने वाले गरीब लोग थे। पर जिस तेजी से अंधाधुंध वनों का कटना कर और पहाड़ का सीने छलनी कर विशालकाय अट्टालिकाएं खड़ी की जा रही हंै। और यहां का पारिस्थितिकीय संतुलन यानि इॅकोलाॅजी बिगड रही है। वह चिंता का विषय है। मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि आप बेहद संवेदनशील व्यक्ति हंै। जब आप लखनउ में पढ़ रहे थे। तो मेरे अभिन्न मित्र प्रो सत्यव्रत रावत जो कालिंदी में आपके साथ ही रहते थे। और मौजूदा समय में हिंदू पीजी काॅलेज मुरादाबाद में प्रिंसिपल हैं। उन्होंने मुझसे आपकी संवेदनशीलता के बारे में बताया। मुझे मालूम है कि बिल्डर और भू माफियाओं के खिलाफ लिखने का खामियाजा हर पत्रकार को भुगतना पड़ता है। कुछ लोग बोलेंगे अब क्यों याद आया। और भी तरह-तरह के आरोप लग सकते है। मगर मसूरी को बचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
बताता चलूं कि पहाड़ों की रानी मसूरी के प्राकृतिक छटा को नष्ट करने का काम राज्य बनने के साथ तेजी से शुरू हो गया था। उससे पहले इसकी नैसर्गिकता और पारिस्थितिकीय संतुलन को कायम रखने के लिए भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ईको टाॅस्क फोर्स का गठन किया था। और उससे पहले चूना खदानों यानि लाइम स्टोन का खनन बंद कर दिया गया था। 1990 के दशक के पूर्वाद्व में मोटीधार स्थित पीपीसीएल की खानों को भी बंद कर दिया गया था। इससे कुछ समय पहले लंबीधार की पार्क इस्टेट क्लाउड एंड तक खाने बंद कर दी गई थी। मसूरी को पर्यावरणविदों ने भूकंप की दृश्टि से बेहद संवदेनशील करार दिया था। रूड़की इंजीनियरिंग काॅलेज ने भी इसे भूकंप के लिहाज से संवदेनशील बताया। 1984 में जब तत्कालीन समय में प्राधिकरण का गठन हुआ तो भवन निर्माण बनाने की तमाम विधियां और उपविधियां बनाई गई। उससे पहले नक्षा पास करने का अधिकार पालिका में निहित था। 1980 में फाॅरेस्ट कंजरवेश्न एक्ट अस्तित्व में आने के बाद से लागू करने की चर्चा होने लगी। 1984 में मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण का गठन हो गया। मानचित्र की स्वीकृति केे लिए अनेक नियम उपनियम बनाए गए। नब्बे के दशक के शुरूआती दौर में जब मसूरी में अंधाधुंध निर्माण कार्य होने लगे तो निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई। और निर्माण कार्यो की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में एक कमेटी का गठन किया गया। जिसे सुप्रीम कोर्ट मोनिटेयरिंग कमेटी जिसे एससीएमसी के नाम से जाना जाता है। कमेटी में पर्यावरणविदों के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेषक पदेन सदस्य, पालिकाध्यक्ष समेत एक अध्यक्ष और सचिव के साथ ही कुछ अन्य लोगों को कमेटी में शामिल किया गया था। 1997 में मसूरी इस्टेट आॅनर्स एसोसियेशन ने पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के मार्फत निर्माण कार्यो से रोक हटाने का मसौदा तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए। और मसूरी में इस्टेटस कोे नोटिफाइड और डि-नोटिफाइड वन भूमि का चिहनीकरण की अनुशंसा दी गई। वन विभाग ने सर्वे आॅफ इंडिया के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया। एमडीडीए ने इसके लिए धन मुहैया कराया। लेकिन आज भी इसका काम पूरा नही हुआ। और नियोजन की कमी के चलते मसूरी में अवैध निर्माणों की बाढ़-सी आ गई। सन् 2000 में एलबीएस अकादमी के प्रशिक्षु अधिकारियों और अन्य अधिकारियों ने मिलकर मसूरी की कैरिंग कैप्पसटी यानि वहन क्षमता पर एक दस्तावेज तैयार किया। इस षोघ कार्य से पता चला कि मसूरी में जिस तेजी से निर्माण हुए और हो रहे हैं। वह वहन क्षमता से कहीं अधिक हंै। और मसूरी किसी भी किस्म की प्राकृतिक या मानव जनित आपदा को नही झेल सकती। सीएम साहब इसका संज्ञान लिया जाए।
गौरतलब है कि प्रकृति को कितना नुकसान पहंुंचाया जा रहा है। पहाड़ ढ़ीले हो गए। और कब इन पहाड़ और चट्टानों का अस्तित्व मिट जाएगा। इसका ताजा-तरीन उदाहरण जोषीमठ की घटना है। मुख्यमंत्री जी सीएम आवास से नजर दौडाएगा तो आपका कोठालगेट-षिव मंदिर से उपर की पहाड़ियां नग्न नजर आएगी। इन पर्वत मालाओं के आभूषण बांज, बुरांश, मौरू, खर्सू के पेड़ों की जगह कंक्रीट के जंगल उग आए हंै। ईको सिस्टम कितना बदल गया, इसकी जीतती जागती तस्वीर हम सब के सामने है। इस बार मसूरी में बर्फवारी नही हुई। यह प्रकृति का संकेत है कि हम पहाड़ों के प्रति कितने क्रूर हो गए हंै। सीएम साहब बचाइए मसूरी को। आप युवा है। आपसे युवा पीढ़ी की बहुत उम्मीदें है। आप विजनरी हंै। पहाड़ का अस्तित्व बचेगा तो पहाड़ी भी बचेंगे।

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