घनघोर कोहरे कें बीच सिमट गई पहाड़ों की रानी मसूरी
मसूरी
कोरोना काल में पर्यटन नगरी से पहाड़ों की रानी जैसे माकूल शब्द का उल्लेख ज्यादा सार्थक है। इन दिनों पर्यटन नगरी में सैलानियों की आमद बेहद कम है। लेकिन पहाड़ों की रानी का हुस्न पूरे शबाव पर है। सुबह से लेकर रात भर रिमझिम बारिश और चारों और पसरे कोहरे ने पहाड़ों की रानी मसूरी को अपने आगोश में ले लिया है। इतना अप्रीतम सौंदर्य, नैसर्गिक वातावरण का लुत्फ सैलानियों को आने वाले दिनो में शायद ही मिले। इसलिए प्रकृति के उपादानों पर थिरकने का अंदाज महज पहाड़ों की सैर करने के बाद ही संभव हो सकता है। महानगरों की तपिश से बचना भी चाहे तो कोरोना आड़े आ ही जाएगा।
कहना न होगा कि बीते कुछ दिनों से कोरोना की आहट से हल्के हुए लोग मालरोड पर सैर करते नजर आ जाएंगे। घरों में दुबके सहमे लोग अब सैर करने की उम्मीद लगाए हुए है। मगर दिलोदिगाम में अभी भी कोरोना की आने वाली लहर भविष्य की पीढ़ी को चिंता में डाले हुए है। रात के घनघोर अंधेरे में कोरोना के डर को चीरते हुए गलियों और सड़कों की स्ट़ीट लाइटें ही हौंसला दे रही है। लंबे समय से रोजी-रोटी कमाने की आस लगाए हुए मेहनतकश मजदूर इस अंधेरे को जल्दी से चीरने के लिए तत्पर हैं। आम से लेकर खास रोजाना कोरोना के अपडेट से खुश नजर आ रहे है। सरकारी तंत्र के गिरते आंकड़े इन्हें खूब दिलाशा दे रहे है। मगर हाकिमों के फरमानों से जिंदगी कसमकस में गुजरी रही है। खाकी वर्दी और कोहरे का पहरा भी कम डरावना नही इन मेहनतकश के लिए। खुशनुमा मौसम से सेठ साहूकार तो लुत्फ ले सकते है। मगर रोज कुछ कमाने की तमन्ना रखने का कोहरा कब छटेगा। यह अभी भी यक्ष सवाल हैं। जिसका जबाव न हाकिमों के पास हैं और नही प्रकृति ही ऐसा संकेत दे रही है। कभी रिमझिम बारिश और कभी गडगडाहट के साथ मूसलाघार बारिश से लोग हलकान है। अब रोजी रोटी कैसे चलेगी। बस इसी कसमकस के बीच घनघोर कोहरे में टिमटिमाते बल्ब ही उन्हें हिम्मत बंधा रहे हैं कि नया सवेरा आएगा। इति