तिलक और आजाद का जयंती पर भावपूर्ण स्मरण

उत्तराखंड मसूरी

मसूरी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 101वीं जयंती पर उनका भावपूर्ण स्मरण किया गया। वक्ताओं ने आजादी के आंदोलन में उनके योगदान पर चर्चा की। पिक्चर पैलेस स्थित तिलक मेमोरियल लाइब्रेरी में सादगी से जंयती मनायी गई। साथ ही इस मौके पर महान कां्रतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती भी मनाई गई।
तिलक लाइब्रेरी सभागार में लगी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की प्रतिमा पर लाइब्रेरी के अध्यक्ष सरदार हरबचन सिंह, सचिव राकेश अग्रवाल सहित समाज सेवक समीर शुक्ला सहित लोगों ने पुष्पाजंलि अर्पित की। देश की आजादी में किए गये योगदान को याद किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि तिलक आजादी के उन महानायकों में एक थे जिन्होंने अपनी गरम विचारधारा के साथ ही देश्ज्ञ की आजादी के लिए संघर्ष किया व नए युग का निर्माण किया। तिलक ने अपनी लेखनी से देश की देशी रियासतों का पक्ष रखा वहीं उन्होंने मराठा केसरी पत्रिका का संचालन भी किया। वह कई बार जेल भी गये। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व किया, साथ ही शिक्षा का प्रसार व क्षेत्रीय भाषाओं को बढावा दिया। वक्ताओं ने कहा कि तिलक महान राष्ट्रभक्त होने के साथ ही महान दार्शनिक, चिंतक भी थे। वहीं चंद्रशेखर के जन्म दिवस पर वक्ताओं ने कहा कि उन्होंने छोटी उम्र में ही आजादी के आंदोलन में प्रतिभाग करना शुरू कर दिया था इसके बाद वह गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुडे। उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने पकड़ कर जेल मंे बंद किया व जब न्यायालय में जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद व पिता का नाम स्वतंत्रता व घर का पता जेल बताया। इसके बाद वह शहीद भगत सिंह व राजगुरू के साथ मिल गये व अंग्रेजी अधिकारी साण्डर्स की हत्या की व कहा कि उन्होंने स्वाधीनता सेनानी लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया है। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए कंा्रति का समर्थन किया। उन्होंने देश में समाजवादी क्रांति का आहवान किया जिस पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया जिस पर उन्होंने कहा कि वह कभी न तो पकड़े जायेंगे और न ही ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सैनिकों से घिर जाने पर स्वयं को गोलीमार कर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को समर्पित कर दिया।

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