धूं-धंूकर जला ऐतिहासिक रिंक, आग की लपटों पर घंटों तक भी नही हो सका काबू, आसपास के मकान भी आए आग की चपेट में

उत्तराखंड मसूरी

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पहाडों की रानी मसूरी के कुलड़ी कैमल्स बैक रोड के मुहाने पर स्थित पहले एशिया और अब भारत का सबसे बड़ा ऐतिहासिक वुडन स्केंटिंग रिंक द रिंक धूं-धूंकर जला।  बताया जाता है कि रविवार सुबह लगभग साढ़े तीन बजे आग लगी। जाफर हाल, कुलडी और आसपास के लोगों ने धुंआ और आग की लपटें उठती देख लोगों को जगाया। तब तक रिंक का स्टाफ गहरी नींद में सो रखा था। रविवार सुबह आंख खुलते ही रिंक हाॅल  जलकर राख हो चुका था। दीवार खडंहर के मानिंद खड़ी हैं।

 

आग लगने की वजह शॉट circut  बताया जा रहा हैं,  बताते हैं कि एक दर्जन कमरे आग की भेंट चढ़ चुके हैं। उधर दूसरी और सड़क पर खड़ी दो कारें भी जलकर राख हो गई। तीसरी कार को मामूली नुकसान पहुंचा। लाखों का नुकसान पर गनीमत यह रही कि जान का नुकसान नही हुआ। रिंक का स्टाफ और एक डायरेक्टर सुरक्षित बाहर निकल गया। कैमल्स बैक में सार्वजनिक सड़क पर वाहनों के पार्क होने के कारण फायर बिग्रेड की गाड़ी बामुश्किल मौके तक पहुंची। अलबत्ता पहले फायर की गाड़ी में पानी नही था। बाद में पानी वाली गाड़ी आयी।
काबिलेगौर यह भी है कि फायर सर्विस को हाईडें्रड ढूंढने और खोलने में भी घंटे भर तक का समय लग गया। जब तक रिंक काअधिकांश हिस्सा आग की चपेट में आ चुका था। हाईड्रेंड खुला तो उसे साफ करने में करीब 20 मिनट का समय जाया हो गया। आग लगने से करीब दो घंटे बाद फायर सर्विस अपने लय में आ सकी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रिंक से सटे भवन स्वामियों में हड़कंप मच गया। बकौल ज्योति पुंडोरा सुबह आग की लपेट इतनी तेज थी कि संभलने का मौका तक नही मिला। उनकी पत्नी सुधा पुंडोरा किसी तरह पास के एक होटल में चली गई। स्थानीय लोगों की मद्द से आसपास के घरों से घरेलू गैस सिलेंडर समेत अन्य जरूरी सामान इत्यादि को हटाया गया। व्यापार संघ अध्यक्ष रजत अग्रवाल, भाजपा नेता सतीशचंद्र ढौडियाल, भजन ंिसह कैंतुरा समेत दर्जनों लोग पूरी मुस्तैदी से मोर्चे पर डटे रहे। बाद में पालिकाध्यक्ष अनुज गुप्ता और सभासद दर्शन सिंह रावत भी मौके पर पहंुचे। फायर सर्विस के जवानों के साथ आसपास के व्यापारी और स्थानीय लोगों ने मद्द की। किसी तरह से पानी का पाइप रिंक के मुख्य भवन तक पहुंचाया गया। फायर कर्मियों ने जान जोखिम में डालकर आग पर काबू करने की कोशिश की। पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में फायर कर्मी भी अपने को असहाय महसूस कर रहे थे। आठ बजे बाद आईटीबीपी के जवान भी मौके पर पहुंचे। लेकिन तब तक रिंक का अधिकांश हिस्सा जलकर राख हो गया था। बताते चले कि मसूरी में तीन भीषण अग्निकांड में आज की घटना भी शुमार हो गईं। अस्सी के दशक से पहले स्टैंडर्ड रिंक जलकर राख हो गया था। उस समय का वह सबसे बड़ा अग्निकांड था। उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी की लाइबेरी और रविवार को द रिंक में लगी आग तीसरी बड़ी घटना है।


रिंक का ऐतिहासिक पक्ष
द रिंक मसूरी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इसका निर्माण ब्रिट्रिश काल में 1890 में हुआ था। यह एशिया का सबसे बड़ा स्केटिंग रिंक है। इसके साथ ही इसमें एक बिल्यिर्ड रूम भी है। जिसमें दो बिल्यिर्ड टेबिल हैं। जिनमें एक टेबिल जो तत्कालीन समय की सबसे बेहतर छह पाॅकेट वाली टेबिल है। इस टेबिल माईकल फरेरा, गीत सेठी समेत देश के नामी गिरामी खिलाड़ियों ने हाथ आजमाए है। इसके साथ ही रिंक हाॅल एशिया के बाद भारत का सबसे बड़ा स्केटिंग रिंक है। अंग्रेजी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अनमोल जैन बताते हैं कि जो इसका स्वामी था। उसने एक डेंटिस्ट को दांत ठीक करवाने के एवज में रिंक की जमीन दे दी। एक कहावत भी कि पैसे क्या दांत तोड़ के दे। कमोवेश यह कहावत दूसरी तरह से चरितार्थ हुई कि दांतों के चिकित्सक डा मिलर को दांत ठीक करने के एवज में पूरी जमीन दे दी। इसका निर्माण अठारहवीं सदी के उत्तरा़द्र्व में शुरू हो गया। इसके बाद रिंक को पूरण चंद एंड संस वालों ने खरीद लिया। हाल ही में एक साल डेढ साल पहले अग्रवाल बंधु ने इसे बेच दिया। रिंक का उजला पक्ष यह रहा कि यहां पर विलियम शेक्सपीयर के नाटकों का मंचन किया जाता था। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी ने द रिंक के इतिहास को प्रमुखता दी। वे बताते है कि रिंक मसूरी शहर की एक शान रहा है। यहां पर आॅल इंडिया रोलर हाॅकी चैंपियनशिप, आर्टिस्टिक स्केंटिंग फीगर स्केंटिंग समेत अनेक प्रतियोगिता आयोजित की जाती रही है। जिस तरह से सिनेमा हाॅल में फिल्म के शो दिखाए जाते है। ठीक उसी प्रकार द रिंक में भी चार शो होते थे। स्केटिंग करने वालों के अलावा दर्शकों के लिए भी एक डेढ़ रूपये टिकट लिया जाता था। स्केटिंग फलोर के चारों और दर्शकों के लिए शानदार केबिन बने हुए थे। इसके साथ ही फलोर के पूर्वी हिस्से में एक बड़ा-सा स्टेज था। जिसमें शरदोत्सव और शेक्सपीयर के नाटकों केा प्रदर्शित किया जाता रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि द रिंक मसूरी की सबसे लाइव जगह थी। कोई पर्यटक द रिंक ऐसे ही आता था। जैसे आजकल लोग कैंपटी फाॅल, चार दुकान और लाल टिब्बा की और रूख करना नही भूलता। द रिंक से देश और दुनिया में उच्च पदों पर कार्यरत अधिकारी, नेता और कॉरपोरेट घरानों से जुड़े लोगों की सुनहरी यादें हैं। रोलर हॉकी याद आते ही जहन में विजेंद्र रौथाण, उत्तराखंड के पूर्व DGP अनिल रतूड़ी, कारण चौहान, संदीप साहनी, दीपक मालिक, राजन गुप्ता के अलावा दर्जनों नाम है। रोलर हॉकी के अंतराष्ट्रीय रेफरी स्व नंदकिशोर बम्बू, एडवोकेट स्व A Rab, राजेन्द्र पंवार, नरेश अग्रवाल, स्व अशोक गोयल, गोपाल भारद्वाज, AP सिंह, सरदार सिंगारा सिंह आदि ऐसे नाम रिंक की याद आते ही जेहन एकाएक आ जाते हैं।

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