बिल्डर चला रहे हैं हरे पेड़ों पर आरी, वन विभाग की सुस्ती संदेह के घेरे में, क्लिफ काॅटेज में हरे पेड़ों पर चली आरी के विरोध में उतरे पर्यावरणवादी

मसूरी

मसूरी
पहाड़ों की रानी मसूरी की नैसर्गिक सुंदरता और पारिस्थितकीय संतुलन लगातार गडबड़ा रहा है। बिल्डर अपने निजी हितों के लिए हरे पेड़ों पर आरी चला रहे हंै। और खुल्ल्मखुला वन अधिनियम की अनदेखी की जा रही है। अलबत्ता जिन लोगों द्वारा विभाग और आला अधिकारियों को शिकायत की जा रही है। उन पर तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे है।
बतातें चले कि विख्यात कांवेंट स्कूल हेम्पटनकोर्ट के समीप क्लिफ काॅटेज में एक बड़े भूखंड के लिए रास्ता निकालने के लिए न जाने कितने ही हरे पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई है। रात के घनघोर अंधेरे में जब लोग गहरी नींद में सो रहे होते है। ठीक उसी वक्त दानवी बिल्डरों ने निरीह पेड़ों पर आरी चलाकर जमींदोज कर दिया। आलम यह है कि जब विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों को पर्यावरणवादी और स्थानीय लोगों ने दबी जुबां से शिकायत की तो इस मामले को दफनाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए।
करीब तीन दशक से मसूरी के पर्यावरण को लेकर चिंता करने वाले पर्यावरणविद विपिन गुप्ता ने इस मामले में दखल दिया। और साथ ही सोशल एक्टिविस्टि ललित मोहन काला ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया। लेकिन इस उनकी आवाज भी नकार खाने की तुती ही साबित होती दिखी। और सुरसामुखी विभाग के आगे हरे पेड़ों की चीख सुनने वाला कोई नही। बता दें कि हुसैनगंज के ठीक उपर एन एच 7 के उपरी हिस्से में क्लिफ काॅटेज में पेड़ों के काटने की शिकायत पर कुछ अखबारनवीसों ने खबर लिख्.ाी तो वन विभाग के संज्ञान तो लिया। लेकिन रवैया हीलाहवाली ही दिखा। अलबत्ता एक अंग्रेजी अखबार के संवाददाता के घर पर कुछ लोगों के फोन धनधनाने लगे। रसूखदार लोग इसी तरह से मसूरी की शांत वादियों में जेसीबी की मद्द से यहां की पारिस्थितिकीय को बट्टा लगा रहे है।
मसूरी से महज तीस किलोमीटर पर स्थित सीएम आवास भी खामोशी से मसूरी की हरियाली को बर्वाद होते देख रहा है। वन विभाग और निर्माण कार्यो के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण अब क्या कार्रवाई करेगा। यह देखना बाकी है। लेकिन जिन पेड़ों की हत्या हो चुकी है। उस पर दुख व्यक्त की किया जा सकता है।
सबसे आश्चर्यजनक यह है कि चुनावी आचार संहिता के दौरान और आतिथि तक मसूरी में लगातार अवैध निर्माण जारी है। झडीपानी से लेकर टिहरी बस स्टेंड, मालरेाड, किताबघर से लेकर दूर संतुला देवी मंदिर तक बिल्डरों के हौंसले उफान पर है। आखिर कोई तो एजेंसी होगी। जो इन पर नजर रखती हो। अब तो सत्ता प्रतिष्ठानों के इरादों पर भी शक होने लगा है। अधिकारियों की कदमताल से यह साफ जाहिर है कि आखिर यह सन्नाटा क्यों पसरा है।

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