राज्य आंदोलनकारी की विधवा को नहीं मिली आज तक  नौकरी मिली न पेंशन, 20 वर्ष से काट रही शासन के चक्कर

मसूरी

मसूरी। उत्तराखंड राज्य को बने भले ही 23 वर्ष से अधिक हो गये हों लेकिन आज भी चिन्हित राज्य आंदोलनकारी के आश्रित पेंशन तक के लिए तरस रहे है। ऐसा ही एक मामला मसूरी का है जिसमें जोत सिंह कंडारी मसूरी गोलीकांड के दिन घायल हो गये थे जिनका चिन्हीकरण भी हो चुका था व तत्काली प्रदेश सरकार ने घायल व सात दिन जेल गये आंदोलन कारियों को नौकरी व पेंशन देने का शासनादेश जारी किया था लेकिन शासनादेश से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन आज तक उनकी आश्रित पत्नी को नौकरी तो दूर पेंशन तक नहीं मिल रही है।
इस संबंध में राज्य आंदोलनकारी के भाई राजेंद्र कंडारी ने बताया कि वह पिछले बीस साल से लगातार शासन प्रशासन व मुख्यमंत्रियों के चक्कर काटते काटते थक गये लेकिन उनकी विधवा को आज तक पेंशन नहीं मिल पायी। जबकि उनका नाम नौकरी की लिस्ट में आ चुका था जिसका पत्र सेवा योजन कार्यालय ने उनको भेजा था लेकिन इससे पूर्व उनके भाई की मृत्यु हो चुकी थी वहीं जिन घायल आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी मिलने की लिस्ट जारी की गई उसमें भी उनका नाम है यही नहीं उन्हें जिलाधिकारी के यहां से हर वर्ष गणतंत्र दिवस व स्वाधीनता दिवस का कार्ड भी आता है।

उसके बाद एक और शासना देश गत वर्ष 23 अपैल 2023 को उत्तराखंड शासन गृह अनुभाग से जारी किया गया जिसमें स्पष्ठ लिखा गया है कि जिन आंदोलन कारियों की मृत्यु हो गई उनके आश्रित पति या पत्नी को पेंशन दी जायेगी जिसकी स्वीकृति प्रदेश के राज्यपाल ने भी दी थी वहीं यह भी स्पष्ठ किया गया है कि जिनकी मृत्यु पेंशन स्वीकृत होने से पहले हो गई उनके आश्रितों को भी पेंशन दी जायेगी। लेकिन आज तक जोत सिंह की विधवा पत्नी जसना देवी कंडारी को पेंशन नहीं मिल पायी व उनका परिवार भरण पोषण के लिए भी संघर्ष कर रहा है। यह आश्चर्य का विषय है कि जिन राज्य आंदोलनकारियों ने राज्य निर्माण के लिए संघर्ष किया व उनकी मृत्यु के बाद उनके परिजन पेंशन के लिए दर दर भटक रहे हैं, यह गंभीर मामला है इस पर प्रदेश सरकार को ऐसे आंदोलनकारियों के आश्रितों को तत्काल पेंशन जारी करनी चाहिए।

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