स्व नरेंद्र सिंह भंडारी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किया, पुस्तक के लेखक डां योगंबर सिंह बत्र्वाल संस्मरण सुनाकर कई बार हुए भावुक, स्व भंडारी के पुत्र दीपेंद्र ने कहा- आज विधायक दो पीढ़ी के लिए कमाते हैं , पिताजी के मंत्री होने के बाद भी आम जन की तरह जी रहे है जिंदगी

उत्तराखंड देहरादून शिक्षा

देहरादूनः/मसूरी
शूरवीर सिंह भंडारी
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व नरेंद्र सिंह भंडारी पहाड़ के विकास पुरूष में शुमार किए जाते थे। पं गोविंद बल्लभ पंत, इंदिरा गांधी, विश्वनाथ सिंह प्रताप, बाबू संपूर्णानंद और यशपाल के करीबी होने के बाद भी इस पहाड़ पुत्र में कभी अभिमान नही दिखा। उनको करीब से जानने वाले और स्व भंडारी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर पुस्तक लिखने वाले डा योगम्बर सिंह बत्र्वाल यही कहते है। उनकी इस बात को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी पुख्ता किया। हरीश रावत ने कहा कि लखनउ स्थित उनके आवास से ही उन्होंने छात्र राजनीति कदम रखा था। और उसके बाद निरंतर स्व भंडारी के सानिध्य में सरहदी से जुडे रहे। हरीश रावत पुरानी यादों में डूब गए थे। मौका था कांग्रेस भवन देहरादून में स्व नरेंद्र सिंह भंडारी (जौरासी चमोली) वालों की 35वी पुण्यतिथि और जन्मशती वर्ष पर आयोजित समारोह में उनके जीवनी पर लिखी विश्लेषाणात्मक पुस्तक का लोकार्पण,
स्व नरेंद्र सिंह भंडारी मूलतः पत्रकार होने के नाते स्वाभिमानी थे। और यही वजह रही कि वे छलकपट की राजनीति से हमेशा दूर रहेे , समाजसेवा में तल्लीन रहे। उनके पुत्र, पौ़त्र आज भी मसूरी और अन्य स्थानों पर बेहद सादगी भरा जीवन जी रहे हैं। उनके पुत्र दीपेेेेेेंद्र भंडारी ने तो यहां तक कह दिया कि आज के विधायक दो पीढ़ी के लिए धन इक्कठा कर लेते है। मगर पिताजी उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे में 22 विभागों के मंत्री रहे। लेकिन आज हम सब भाई आम जिंदगी जी रहे हैं। मसूरी बड़े मोड स्थित भवन मेेेेेें सभी गुजर-बसर कर रहे हैं।
देहरादून स्थित कांग्रेस भवन में रविवार को चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान उत्तराखंड के तत्वावधान में स्व नरेंद्र सिंह भंडारी की जीवनी पर आधारित प्रकाशित पुस्तक का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि स्व भंडारी ने जीवनपर्यत सिद्वांत आधारित राजनीति की।लखनऊ विश्व विधालय में एंथ्रोपाॅलाॅजी के प्रवक्ता की नौकरी छोड़कर समाजसेवा और राजनीति में कदम रखा। पं गोविदंबल्लभ पंत के कहने पर राजनीति में कदम रखा तो फिर मुड़कर नही देखा। उन्होंने कहा कि जितना बजट आज उत्तराखंड का हैं। उस दौर में उतना ही बजट उत्तर प्रदेश का हुआ करता था। ऐसे में सड़कों का निर्माण करवाना कितना कठिन होता था। कहा कि चमोली से लेकर पिथौरागढ़ तक जो सड़क उस जमाने में बनायी गई वह भंडारी जी की देन है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत  ने उन से जुड़े कई संस्मरण भी साझा किए। और बार-बार उनकी तस्वीर निहारते रहे। उनका स्व भंडारी और उनके परिवार से अगाध प्रेम था। लखनउ की यादें ताजा की। इस मौके पर पूर्व काबीना मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण ने कहा कि आज जो राज्य हमें मिला। उसकी परिकल्पना स्व भंडारी ने ही की थी। उन्होंने कहा कि नरेंद्र सिंह भंडारी का  श्रीनगर बिडला संघटक महाविद्यालय के निर्माण में अहम भूमिका रही।
चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के संस्थापक और स्व नरेंद्र सिंह भंडारी की जीवनी पर प्रकाशित पुस्तक के लेखक डां योगंबर सिंह बत्र्वाल ने कहा कि वे बीस साल से स्व भंडारी के कृतित्व और व्यक्तित्व को आम जनमानस के सामने लाने का प्रयास कर रहे थे। आज उनकी यह यात्रा सफल हो गई। बताते चले कि डा योगंबर सिंह बत्र्वाल का गांव और स्व भंडारी का गांव आसपास ही है। स्व भंडारी जौरासी और डा बत्र्वाल रडवा के है। डा बत्र्वाल ने अधिकांश समय लखनउ में हजरत गंज स्थित स्व भंडारी के आवास पर ही बिताया। और उनके सुखदुख के साथ हमेशा खड़े रहे। सरहदी समाचार पत्र मे सहयोग भी दिया। इसलिए डा बत्र्वाल स्व नरेंद्र सिंह भंडारी के पारिवारिक सदस्य की तरह रहे। पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में स्व भंडारी को याद कर कई बार उनका गला भर आया। पूरे कार्यक्रम में वे कई बार भावुक हो गए। उनका स्व भंडारी से अंतरंग संबंध था। पांच सौ पेज की किताब स्व भंडारी को समर्पित की। भारी अस्वस्थता के बाद भी डा बत्र्वाल ने यह भगीरथ प्रयास पूरा किया। स्नो बाॅल आॅफ गढवाल का जिक्र किया गया। स्व भंडारी की स्नो बाॅल आफ गढ़वाल के बाद ही पं नेहरू ने चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ को सीमांत जिलों का दर्जा दिया था। और इस इलाकों को सीमावर्ती होने के कारण कई रियायते दी। दरअसल स्नो बाॅल आफ गढ़वाल के प्रकाशन के बाद पं नेहरू ने स्व भंडारी को बुलाकर हिमालयी राज्यों पर अपना फोकस किया था। स्व भडारी कई भाषाओं के ज्ञाता थे। यह कहना है डा योगबंर सिंह  बर्त्वाल  का। कार्यक्रम का संचालन शिक्षाविद् कमला पंत ने किया। उन्होंने चंद्रकुंवर बर्त्वाल का भी भावपूर्ण स्मरण किया , इस मौके पर विशेष रूप से चमोली से भुवन नौटियाल, हरीश मैखुरी, सुरेंद्र अग्रवाल, वरिष्ठ पत्रकार संजय कोठियाल , चंदन सिंह नेगी, चन्द्रमोहन कंडारी, चंद्रकुंवर बत्र्वाल शोध मसूरी से शूरवीर सिंह भंडारी, स्व भंडारी के परिजनों में दीपेंद्र भंडारी , योगेन्द्र भंडारी, सलिल भंडारी, सर्वोदयी नेता बिजेंद्र नेगी बिज्जू भाई, प्रियंका, कलावती बत्र्वाल, डा मीनाक्षी रावत, प्रभा सजवान, पुस्तक की सह संपादक कुसुम रावत, समय साक्ष्य प्रकाशन की रानू बिष्ट, प्रवीण भट्ट समेत कई साहित्यकार और समाजसेवी मौजूद थे।

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